काकोरी काण्ड
काकोरी काण्ड | kakori kand in hindi
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. लेकिन इसके बारे में बहुत ज्यादा जिक्र सुनने को नहीं मिलता. इसकी वजह यह है कि इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी. लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि काकोरी कांड ही वह घटना थी जिसके बाद देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था और वे पहले से ज्यादा लोकप्रिय होने लगे थे.
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर शोध करने वाली डॉ. रश्मि कुमारी लिखती हैं, ‘1857 की क्रांति के बाद उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में चापेकर बंधुओं द्वारा आर्यस्ट व रैंड की हत्या के साथ सैन्यवादी राष्ट्रवाद का जो दौर प्रारंभ हुआ, वह भारत के राष्ट्रीय फलक पर महात्मा गांधी के आगमन तक निर्विरोध जारी रहा. लेकिन फरवरी 1922 में चौरा-चौरी कांड के बाद जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, तब भारत के युवा वर्ग में जो निराशा उत्पन्न हुई उसका निराकरण काकोरी कांड ने ही किया था’.
1922 में जब देश में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, उसी साल फरवरी में ‘चौरा-चौरी कांड’ हुआ. गोरखपुर जिले के चौरा-चौरी में भड़के हुए कुछ आंदोलकारियों ने एक थाने को घेरकर आग लगा दी थी जिसमें 22-23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए थे. इस हिंसक घटना से दुखी होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था, जिससे पूरे देश में जबरदस्त निराशा का माहौल छा गया था. आजादी के इतिहास में असहयोग आंदोलन के बाद काकोरी कांड को एक बहुत महत्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जा सकता है. क्योंकि इसके बाद आम जनता अंग्रेजी राज से मुक्ति के लिए क्रांतिकारियों की तरफ और भी ज्यादा उम्मीद से देखने लगी थी.
नौ अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली थी. इसी घटना को ‘काकोरी कांड’ के नाम से जाना जाता है.
कोहिनूर हीरे का इतिहास : हिंदी में Download PDFउत्तर प्रदेश में लखनऊ के पास स्थित यह स्थान आधुनिक भारत में चर्चा का विषय बना। 9 अगस्त, 1925 को इस स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संग्रहीत धनराशि को लूटा।
- यह घटना इतिहास में काकोरी षड्यंत्र के नाम से जानी जाती है। क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित कार्रवाई के तहत यह कार्य करने की योजना बनाई। उन्होंने ट्रेन के गार्ड को बंदूक की नोंंक पर काबू कर लिया। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिज़ोरी को तोड़कर आक्रमणकारी दल चार हज़ार रुपये लेकर फरार हो गए।
- इस डकैती में अशफाकउल्ला, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त, रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। काकोरी षड्यंत्र मुक़दमें ने काफ़ी लोगों का ध्यान खींचा। इसके कारण देश का राजनीतिक वातावरण आवेशित हो गया।
- इस घटना से जुड़े 43 अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाया गया। निर्णय 6 अप्रैल, 1927 को सुनाया गया। रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशनसिंह को मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाई गई। सचीन्द्र सान्याल को आजीवन कारावास हुआ और मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्षों का सश्रम कारावास दिया गया। कुछ समय बाद अशफाकउल्ला को मृत्युदण्ड दिया गया। 14 अन्य लोगों को लम्बी सज़ा सुनाई गई। दो व्यक्ति अभियोजन पक्ष के मुखबिर बन गए। चन्द्रशेखर आज़ाद को पुलिस खोजती रही।